चन्द्रगुप्त मौर्या की इतिहास{History of Chandragupt maurya}

चन्द्रगुप्त मौर्या का इतिहास     


                    सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्या का जन्म लगभग 340 ईसा पूर्व में हुआ था। वे (321-298 ईसा  पूर्व )तक मगध के सम्राट बने रहे थे। इनहोने मौत्य वंश की स्थापना किया।  चंद्रगुप्त   एक साम्राज्य के अधीन करने में सफल रहे। इन राजीरोहण की तिथि लगभग 321  BC निर्धारित की गयी है ,उनहोने ने लगभग 24 वर्षो तक मगध पर शासन किया।  प्रकार उनका शासन  अंत 297 BC   में हुआ। लगभग 4 वर्षो तक मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त के दरबार में एक यूनानी राजदूत के रुओ में चन्द्रगुप्त की सेवा की। ग्रीक और लैटिन भाषा में क्रमशः चंद्रगुप्त को सांद्रोकोट्स  एवं एंड्रोकोत्तस के नाम से भी जाना जाता है। 

चन्द्रगुप्त का साम्राज्य विस्तार  की कहानी  

      चन्द्रगुप्त मौर्या ने भारतीय इतिहास में क महान शासक के रूप में अपना नाम दर्ज किया है। चन्द्रगुप्त के सिहासन सँभालने से पहले मकदूनिया (मेसोडोनिया ) का शासक सिकंदर ने भारत के उत्तर पश्चिम उपमहाद्वीप पर  आक्रमण किया था ,परन्तु 324 BC में उसके सेना में किसी कारन से विरोध हो जाने के वजह से आगे नहीं बढ़ सका।  जिसके कारन भारत-ग्रीक और स्थानीय शासको द्वारा शासित उपमहाद्वीप पर सीधे चन्द्रगुप्त मौर्या ने अधिकार क्र लिया। चन्द्रगुप्त के  चाणक्य (विष्णुगुप्त / कौटिल्य )थे।  उसने अपने गुरु के साथ मिलकर एक नया साम्राज्य की स्थापना एवं एक बड़ी सेना का निर्माण किया। और अपने साम्राज्य के सीमाओं का विस्तार  करना निरंतर


जारी रखा।चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य को अपना प्रधानमंत्री घोषित किया।  आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत पर (हर्यक वंश के शासक धनानंद के अधीन था ) चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त ने  कसम खाई की वे उसके साम्राज्य  विनाश कर  देंगे और कर  भी दिया। उसके बाद दोनों ने मिलकर  विशाल विजयवाहिनी  किया।  ब्राह्मण  ग्रन्थ में नन्दो का विनाश करने का श्रेय मूलतः चाणक्य को दिया जाता है।    

                                                                                    चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है की सैनिको की भर्ती चलो ,मल्लेछों ,ारतकीविको तथा शस्त्रोपजीवी श्रेणियों के लोगो की करनी चाहिए।  विशाखदत्त द्वारा रचित पुस्तक से पता चलता है की चन्द्रगुप्त ने हिमालय प्रदेश के राजा प्रवर्तक से संधि की थी। [प्लूटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त ने लगभग 6 लाख के विशाल सैनिको द्वारा सम्पूर्ण भारत को अपने कब्ज़ा में कर लिया था। जस्टिन के मत अनुसार भारत चन्द्रगुप्त  के अधिकार में था। 

             चन्द्रगुप्त मौर्या ने सबसे पहले अपनी स्थिति पंजाब में सुदृढ़ की।  उसका यवनो से युद्ध लगभग सिकंदर के मृत्यु के बाद से ही शुरू हो गया था , चन्द्रगुप्त ने अपने विशाल सेना के बल पर यवनो से युद्ध किया अवं 317 BC तक यवनो को पंजाब से भगा दिया। साथ ही पश्चिमी पंजाब के शासक क्षत्रप भूदेमस ने अपनी सेनाओ सहित भारत छोड़ा। चन्द्रगुप्त के एवं युद्ध के बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहा जा सकता है। इस सफलता के बाद से उन्हें पंजाब और सिंध प्रान्त मिल गया।  


चन्द्रगुप्त मौर्या का महत्वपूर्ण युद्ध     

चन्द्रगुप्त का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध धनानंद से उत्तराधिकार के लिए हुआ। जस्टिन और प्लूटार्क के वृतांतो से स्पष्ट है की सिकंदर के भारत अभियान के समय चन्द्रगुप्त ने नन्दो के खिलाफ उसे भड़काया था ,परन्तु चन्द्रगुप्त के किशोर वयवहार ने यवनविजेता को क्रुद्ध कर दिया।  पुरातात्विक स्रोतों से लगता है की नंदराज चन्द्रगुप्त और चाणक्य  के प्रति असहिष्णुः  हो चुके थे। महावंश के टिका से लगता है की चन्द्रगुप्त ने नंद साम्राज्य के मध्य भाग पर आक्रमण किया था, परन्तु उसे सफलता हाथ नहीं लगी और तुरंत उसे अपनी त्रुटि का पता लग गया और उसने फिर नए आक्रमण सीमांत प्रदेशो से आरम्भ किया ,अंततः उसने पाटलिपुत्र (पटना ) को घेर लिया और धानंद को मार  डाला।
इसके बाद बहुत सारे तमिल साहित्य से लगता है की चन्द्रगुप्त ने अपना साम्राज्य विस्तार दक्षिण भारत के तरफ भी किया।  एक मामुलनार नमक तमिल लेखक ने तिनेवेल्लि जिले में हुए मौर्या आक्रमण का उल्लेख किया है। इसकी पुष्टि अन्य तमिल लेखकों और ग्रंथो  होती है। 

  • मैसूर से उपलब्ध कुछ अभिलेखों से चन्द्रगुप्त द्वारा शिकारपुर तलूक के नगरखंड के रक्षा करने का उल्लेख मिलता है। उक्त अभिलेख 14 वी  शताब्दी का है परन्तु ग्रीक-तमिल लेखकों आदि के साक्ष्य को अस्वरीकृत नहीं क्या जा सकता है। 
चन्द्रगुप्त ने सौर राष्ट्र को भी जीता था। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से पता चलता है की यहाँ का राजयपाल पुष्यगुप्त था। 

कुछ महत्वपूर्ण बातें 

चन्द्रगुप्त और सेलुकस निकेटर

सेल्यूकस निकेटर  एलेगजेंडर (सिकन्दर ) का सेनापति था जो भारत में उसकी मृत्यु के बाद उसके विजित क्षेत्रो पर उसका उत्तराधिकारी बना ,वह सिकंदर द्वारा विजित भाग को प्राप्त करने के लिए उत्त्सुक था इस उदेश्य से उसने 305 BC में उसने भारत पर आक्रमण किया  परन्तु वह चन्द्रगुप्त के सामने टिक नहीं सका और  पराजित हो गया। फिर उसने चन्द्रगुप्त के साथ संधि कर उसके साथ अपनी बेटी करलेनिया का विवाह कर दिया एवं चन्द्रगुप्त को उपहार में आरकोसिया (कंधार ) जेड्रोसिया,परोपनिसिया(काबुल)  दे दिया। फिर उसने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा।  कुछ समय बाद चन्द्रगुप्त ने उसे दरबार में रहने  और अपने शासन के बारे में लिखने के लिए इंडिका नमक किताब बोला। 

चन्द्रगुप्त का साम्राज्य 

चन्द्रगुप्त का साम्राज्य  विस्तृत था। इसने सम्पूर्ण उत्तरी और पूर्वी भारत के साथ-साथ उत्तर में बलूचिस्तान , दक्षिण में  मैसूर , पश्चिम में सौर-राष्ट्र  तक का वस्तृत भू -प्रदेश सम्मलित था। इसका साम्राज्य विस्तार उत्तर में हिन्दुकुश पर्वत से दक्षिण में कर्नाटक ,पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में सौर -राष्ट्र तक था। साम्राज्य का सबसे बड़ा अधिकारी सम्राट स्वयं था।  शासन के विधि  सुविधा के लिए प्रांतो  को कई भागो में बांटा  गया था। सभी प्रान्त सम्राट के प्रति उत्तरदयी  होता था।   दूरस्थ प्रदेश सडको और राज्य मार्गो द्वारा जोड़ा फञा था। 


पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना )  मौर्या साम्राज्य की राजधानी था।  जिसके विषय में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने विस्तृत विवरण  दिया है। नगर के प्रशसनिक वृतांतो से हमें उस की सामाजिक एवं  आर्थिक परिस्थितियों को समझने में सहयता मिलती है। 

सैन्य शक्ति -चन्द्रगुप्त का शासन वयवस्था के प्रधान रूप  वर्णन मेगस्थनीज द्वारा रचित पुस्तक इंडिका और कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र से जानकारी मिलती है।  राजा  विभिन्न अंगो  होता था।  वह शासन के कार्य में अथक रूप  रहता था। मेगस्थनीज के अनुसार राजा दिन में नहीं सोता था क्योंकि  वह दिन भर राजदरबार में लोगो की समस्या सुनने और सुलझाने में लगा  रहता था। मालिश कराते समय भी वह कार्य करते रहता था इतना ही नहीं बल्कि चन्द्रगुप्त बाल कटाने के समय भी वह दूतो से मिलता था। मेगस्थनीज और कौटल्य दोनों से ही ज्ञात होता है की राजा की प्राणी की सुरक्षा के लिए समुचित वयवस्था की जाती थी मेगस्थनीज के अनुसार राजा की रक्षा स्तनधारी स्त्रियाँ  करती थी  एवं राजा को अपने प्राण का भय हमेशा लगा रहता था जिसके कारन हर दिन वह शयन कक्षा बदल कर सोता था।  राजा केवल जरुरी  लिए ही (न्याय ,आखेटक ,युद्ध ,यज्ञानुष्ठान आदि ) के लिए ही घर से बहार निकलते थे। राजा के निकलते वक्त सड़क को दोनों ओर से रस्सी से घेर दिया जाता था उस रस्सी को पर करने पर प्राणदंड का प्रावधान था।  

                    अर्त्थशास्त्र के अनुसार एक ामंत्री परिषद् होता था। कौटल्य के अनुसार अनुपस्थित मंत्री का भी विचार सुनाने   का इंतजार किया जाता था  मंत्रिपरिषद के गुप्त बातो को गुप्त रखने का भी प्रावधान था। मेगस्थनीज के अनुसार राज्य में सबसे बड़े अधिकारी मंत्री और सचिव  होते थे। 

चंद्रगुप्त मौर्या के शासनवयवस्था की सुसंगठित मौकरशाही थी। जो राज्य में विभिन्न  की आंकड़ों  को शासन की सुविधा के लिए एकत्र  थी केंद् द्वारा शासन के विभिन्न विभागों और प्रदेशो पर गहरा नियंत्रण रहता था। आर्थिक और सामाजिक जीवन  दिशाओ में इतना गहन और कठोर नियंत्रण प्राचीन भारतीय इतिहास में किसी अन्य काल में ऐसी सुचना नहीं  मिलती है। ऐसा लगता है की यह वयवस्था नितांत नविन नहीं थी। संभवतः पूर्वर्ती मगध के शासको विषेशतः नंदवंशीय इस वयवस्था के नींव डाले  होंगे। 

चन्द्रगुप्त मौर्या का कूल चन्द्रगुप्त मौर्या के कूल  के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है ,मुद्राराक्षस नमक नाटकीय पुस्तक में इसे वृषल और कुलीन बतया गया है वृषल का दो अर्थ है ,क्रमशः शूद्र -पुत्र ,श्रेष्ठ इनके कूल  को लेकर सभी इतहासकारो  मतभेद है \कोई उन्हें शूद्र समझता है तो कोई क्षत्रिय तो कोई सर्वश्रेठ  समझता है। 

 

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