MAJOR DHYAN CHAND BIOGRAPHY IN HINDI

 मेजर ध्यान चंद बायोग्राफी 


Major dhyan chand biography in hindi


हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद का जीवन परिचय  (1905-1979) trend2news.in




ध्यान चंद 

हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्द मेजर ध्यान चंद का जन्म  29 अगस्त 1905 को कई नदियों के संगम नगरी प्रयागराज में हुआ था। ध्यान चंद को लोग प्यार से दादा के नाम से भी पुकारते हैं। मेजर चन्द ने भारतीय हॉकी टीम को ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जिताने में अहम् भूमिका निभाई थे। तभी से इनके जन्म दिन को राष्ट्रिय खेल दिवस के रूप में 29 अगस्त को मनाते हैं।


 
उन्हें हॉकी के जादूगर  कहा जाता है। मेजर चंद ने अपने जीवन काल में 1000 से ज्यादा मेडल जीते हैं। ऐसा कहा जाता है की जब वे मैदान में उतरते थे तो उनके स्टिक से मनो गेंद चिपक सा जाता था। उन्हें 1956 में भारत के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान पदम्भूषण से भी सम्मानित किया गया था। इसके आलावा कई सरे संगठन एवं बहुत से प्रतिष्ठित लोग उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का मांग करते रहे हैं। केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने भी प्रधानमत्री को चिट्ठी के जरीय उन्हें भारत रत्न देने की मांग की है।  


जीवन परिचय 

मेजर धयान चंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहबाद जिला में हुआ था। उनका जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। बचपन में उनमे कोई भी खिलाडी बनाने वाला लक्षण नहीं देखा गया था। इसलिए कहा जा सकता है की कोई भी खेल के प्रतिभा जन्मजात हो ऐसा जरूरी नहीं है। ध्यान चंद ने अपने सतत परिश्रम , लगन ,अभ्यास एवं अपने ढृढ़ संकल्प के सहारे आज यह प्रतिष्ठा हासिल  है। उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा ख़त्म करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में दिल्ली के प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट में सडजरान सैनिक के तौर पर भर्ती हो गए। सैनिक में भर्ती होने के वक्त तक उनके मन में हॉकी के प्रति उनके मन में कोई दिलचस्पी या रूचि नहीं थी। 


ध्यान चंद को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार तिवारी को जाता है। तिवारी एक खेलप्रेमी वयक्तित्व के आदमी थे। मेजर ध्यान चंद ने  देख -रेख में खेलना आरम्भ किया और देखते ही देखते वे दुनिया के महान खिलाड़ियों के लिस्ट में अपनी जगह बना ली। 1927 में उन्हे लांस बना दिया गया, फिर 9132 में नायक , 1937 में कप्तान बना दिया गया जिस समय वे भारतीय हॉकी दाल के कप्तान थे। फिर 1943  लैफ्टिनेंट नियुक्त हुए एवं अंततः उन्हें मेजर बना दिया गया।  ये सारी पदोन्नति उनके हॉकी खेल में अच्छा करने के कारण होती गयी न की सैनिक में कुछ बड़ा करने के लिए।  


ध्यान चंद का खिलाडी जीवन 

मेजर ध्यान चंद को फुटबॉल और क्रिकेट के बड़े खिलाड़ियों के समतुल्य मन गया है। वे गेंद को स्टिक से इस प्रकार हीट करते थे की प्रतिद्वंदी खिलाडी को लगता था की उनके स्टिक में जादू है। यहाँ तक की हॉलैंड के एक  दौरान उनके स्टिक को चुम्बक लगे होने के आशंका से तोड़ कर देखा गया था। इसी तरह जापान में भी एक बार उनके हॉकी स्टिक में गोंद लगे रहने का आरोप लगाया। ध्यान चंद का खेल के इस कलाकारी को देख कर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें  देश के लिए खेलने का ऑफर दिया था परन्तु ध्यान चंद भारत के लिए खेलना ही शान समझते थे और हमेशा इनहोने इंडिया ही खेला।  वियना में ध्यान चंद के चार हाथ  हॉकी स्टिक वाली  लगायी गयी है और यह दिखाने की कोशिश किया गया है की वे कितने प्रतिभाशाली खिलाडी थे। 

सूबेदार तिवारी को वे अपना पहला हॉकी गुरु मानते थे। ध्यान चंद जबतक ब्राह्मण रेजिमेंट में थे तब तक सेना के ही प्रतियोगिता में ही हॉकी खेला थे। 13 मई 1926 में न्यूज़ीलैंड में अपना पहला मैच खेले। न्यूज़ीलैंड में इन्होंने कुल 21 मैच खेले जिसमे 18 जीते 2 अनिंरित रहा एवं एक हारे। पुरे मैच के दौरान वे 192 गोल लगाए उनमे सिर्फ 24 गोल ही हुए। वही 1932 में श्रीलंका में दो मैच खेलें जिसमे एक मैच में 21 -0 तथा दूसरे में 10 -0 से विजयी रहे। इस तरह से उन्होंने विभिन्न देशो में मैच खेले और अंतरार्ष्ट्रीय मैचों में  कुल 400 से अधिक गोल किए। फिर मेजर ध्यान चांद ने अप्रैल 1949 में हॉकी से सन्यास ले लिया। 


मेजर ध्यान चंद का ओलिंपिक करियर 



 एम्स्टर्डम (1928) 

ध्यान चंद ने अपने ओलिंपिक कैरियर की शुरुआत इसी खेल से किया। 1928 में एम्स्टर्डम ओलिंपिक खेलो में भारत को पहली बार खेलने को मौका मिला था जिसमे ध्यान चंद भी थे। इस खेल में भारतीय टीम पहली सभी मुकाबला जित गयी। वही 17 मई 1928 ऑस्ट्रिया को 6 -0 ,18 मई को बेल्जियम को 9 -0 से ,20 मई को डेनमार्क को 5 -0 से ,और 22 मई को स्वीट्जरलैंड को 6 -0 से एवं 26 मई को फाइनल में हॉलैंड को 3 -0 से हराकर विश्व विजेता का ख़िताब हासिल किया। वही फाइनल में ध्यान चंद ने दो गोल किए थे। 


लांस एंजिल्स (1932)


1932 में हुई लांस एंजिल्स में हुई प्रतियोगिता  ध्यान चंद की टीम को शामिल कर ली गयी। इस पुरे मैच के दौरान मेजर ध्यान चंद ने कुल 262 में से 101 गोल स्वयं किए। और इस मैच में भारत ने अमेरिका को 24 -1 से हराया था।

इस तरह से मेजर ध्यान चंद ने 1936 में बर्लिन का ओलिंपिक खेलो में शामिल होने का मौका मिला जिसमे उन्हें कप्तान चुना गया था। 

मेजर ध्यान चंद को सम्मान 

उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित सम्मान पदमविभूषण से सम्मानित किया गया था। उनके जन्म दिन 29 अगस्त को राष्ट्रिय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। एवं इसी दिन इस खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन पुरुस्कार और द्रोणाचार्य पुरुस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलिंपिक संघ ने ध्यान चंद को शताब्दी का खिलाडी घोषित किया था। वर्तमान में इन्हे भारतरत्न देने की मांग चल रही है।    


वर्ष 2021 में राजीव गाँधी खेल रत्न पुरुस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यान चंद खेल रत्न रखा गया है। यह कार्य भारत सरकार द्वारा मेजर ध्यान चंद को सम्मानित करने के लिए किया गया है। 

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