PRAMOD BHAGAT BIOGRAOHY , STRUGGLE,FAMILY,WIFE IN HINDI

प्रमोद भगत।

प्रमोद भगत को बचपन में ही पोलियो हो जाने के कारण, बहुत सारे संघर्षों का सामना करना पड़ा, और आज टोक्यो पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है प्रमोद भगत के स्वर्ण पदक इतनी खुशी में भारत सरकार ने उन्हें पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया है।

श्री प्रमोद भगत जी के संघर्ष  की कहानी।
Padamsri Sri. Pramod Bhagat Ji


इस लेख में हम प्रमोद भगत से जुड़ी उन सभी संघर्षों के बारे में चर्चा करेंगे जी संघर्ष के जरिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और आज अपाहिज होते हुए भी टोक्यो पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है।

प्रमोद भागत के जीवन की कहानी।



बचपन से ही पूरी हो जाने के कारण संघर्ष किया और आज टोक्यो पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचकर "श्री प्रमोद भगत जी" हुए पदमश्री से सम्मानित।

जिस तरह से एक कहावत है लहरों से डरकर कभी नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती शायद यही लाइन है श्री प्रमोद भाऊ जी के मन में आग लगा दी होगी और उन्होंने कड़ी संघर्ष के बाद यह मुकाम हासिल किया हो।

चलिए जानते हैं पर वह भगत जी के संघर्ष की कहानी। जीवन में वही व्यक्ति आगे बढ़ता है जो कभी अपने मुश्किल परिस्थितियों से घबराता नहीं बल्कि, उससे डटकर मुकाबला करता है।

प्रमोद भगत का जन्म।


प्रमोद भगत एक भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी है। वे जिला वैशाली राज बिहार के रहने वाले हैं। उनका जन्म 4 जून 1988 को वैशाली में हुआ था उनके बचपन में ही पोलियो मार दिया था जिसके कारण हुए अपाहिज हो गए थे। वह वर्तमान में परा बैडमिंटन में प्रथम श्रेणी के खिलाड़ी हैं। उनका घर वैशाली जिला के हाजीपुर में पड़ता है।

प्रमोद भगत के जीवन के कुछ कहानी।


इस बात का प्रत्यक्ष उदहारण टोक्यो पैराओलिम्पिक में अपने शानदार प्रदर्शन से बैडमिंटन एकल एसल 3 स्पर्धा में स्वर्ण पदक यानि गोल्ड मेडल जितने वाले प्रमोद भगत जी। बिहार के रहने वाले श्री प्रमोद भगत जी को पांच साल की उम्र में ही पोलियो का शिकार होना पड़ा था। जिसके बाद उनकी बुआ उन्हें अपने साथ ओडिसा ले गयी थी। लेकिन उनकी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ। ओडिसा में ही उन्होंने अपनी परिस्थिति को सुधारने की ठानी और बैडमिंटन में अपना करियर तलाशा। यह उनकी मेहनत का ही फल है जिसके वजह से आज उन्होंने भारत के लिए गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया है। यही नहीं कार्यो और सहसो को देखते हुए भारत सर्कार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पदमश्री सम्मान से सम्मानित किया है। लेकिन पोलियोग्रस्त होने के बावजूद देश के लिए गोल्ड मेडल जितना और पदमश्री पाना श्री प्रमोद भगत के लिए  था। आइए जानते हैं उनके जीवन के प्रेरणादायक सफर  में। 

श्री प्रमोद भगत जी के संघर्ष  की कहानी। 


4 जून 1988 को बिहार के वैशाली के सुभाई गांव में एक गरीब परिवार में जन्मे प्रमोद भगत जी का बचपन काफी अभाव में व्यतीत हुआ। 5 साल की उम्र में ही उन्हें पोलियो हो गया था। उनके घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि इलाज करा पाते, इसलिए प्रमोद के पिता ने उन्हें बुआ के साथ ओडिशा भेज दिया। इलाज के दौरान से लेकर लगातार ओडिशा में अपनी बुआ के यहां रह कर प्रमोद और उनके दो भाइयों का बैडमिंटन के प्रति जुनून बढ़ता गया, लेकिन घर की गरीबी की वजह से प्रमोद अपनी बुआ के घर रह रहे थे। परंतु यहां के हालात भी अच्छे नहीं थे। ओडिशा में जिस जगह वे रहते थे वहां पास के कुछ लड़के बैडमिंटन खेला करते थे ।प्रमोद और उनके भाइयों के पास बैडमिंटन खेलने के लिए रैकेट नहीं था। इसलिए वह खेलने की लालसा में बैडमिंटन कोर्ट की सफाई किया करते थे, बदले में लड़के उन्हें अपना रैकेट देते थे। यहीं से प्रमोद के मन में बैडमिंटन में कैरियर बनाने का जुनून पैदा हुआ और उन्होंने इसी में अपना करियर बनाने की ठानी और शायद वही वजह है कि, वह आज भारत के सर्वोच्च सम्मान में से एक पदम श्री तक पहुंच पाए हैं।

घंटे तक अभ्यास किया करते थे।


श्री प्रमोद भगत जी बैडमिंटन के प्रति बहुत जुनूनी थे। वह घंटों तक इसका अभ्यास किया करते थे, जिसके बाद उन्हें बैडमिंटन प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया। शुरुआत के समय में उन्होंने जिला स्तर पर कोई टूर्नामेंट जीते है ।फिर वे पैरा-बैडमिंटन की ओर रुख किया। इसके बाद प्रमोद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिकॉर्ड अपने नाम की । वर्ष 2018 में पैरा एशियाई खेलों में उन्होंने एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता था । वे विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। कुल मिलाकर 45 अंतर्राष्ट्रीय कर चुके हैं।

माँ के मृत्यु के बाद में अपना हौसला नहीं खोया।


टोक्यो ओलंपिक में भारत को बैडमिंटन में स्वर्ण पदक दिलाने वाले शटलर  श्री प्रमोद भगत जी ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव को देखा है ।पैरा- ओलंपिक से कुछ माह पहले ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी ।जिसके कारण वो खेल में शामिल नहीं हो सके। इसके बाद उन्हें वे व्हेर अबाउट दोषी करार दिया गया था। लखनऊ में दिए गए पते पर नहीं मिलने के कारण बीडब्ल्यूएफ ने उनका मिस्टेट करा दिया। लेकिन प्रमोद ने हिम्मत नहीं हारी ।प्रमोद पटना से वापस आने के बाद फिर से तैयारियों में जुट गए और अपनी मेहनत से पैरा-ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर गए।

टोक्यो पैरा ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर रचा इतिहास।


श्री प्रमोद भगत जी ने बैडमिंटन की कई प्रतियोगिता में भाग लिया और जीत हासिल की । लेकिन टोक्यो पैरा-ओलंपिक में उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन को दिखाते हुए भारत के लिए गोल्ड जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने बैडमिंटन में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है । आज हर कोई श्री प्रमोद भगत जी के प्रदर्शन की प्रशंसा कर रहे हैं। भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतने पर श्री प्रमोद भगत जी कहते हैं, 

की मैंने 2 साल पहले जापान में इसी प्रतिद्वंदी के खिलाफ खेला था और मैं हार गया था ,वह मेरे लिए सीखने का मौका था । आज वही स्टेडियम और वही माहौल था मैंने जीतने की रणनीति बनाई । 33 साल के बाद प्रमोद ने ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को 45 मिनट में 21-14, 21-17 से हराकर गोल्ड मेडल पर अपना कब्जा किया।

कई अवार्ड्स मिल चुके हैं,प्रमोद भगत को।


श्री प्रमोद भगत जी को पदम श्री सहित कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। प्रमोद भगत जी आज अपने कार्यों के लिए कई सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। उनके कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। यही नहीं वो खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं। हाल ही में हुए पैरा-ओलंपिक में भारत के लिए गोल्ड जीतकर एक नया इतिहास रच दिया है।

प्रमोद भगत जी ने टोक्यो में हुई पैरा ओलंपिक खेल में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतकर एक नया इतिहास रचा है और अपने सफलता की कहानी में एक नई कहानी जोड़ी हैं। उन्होंने अपने परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके और अपने शानदार प्रदर्शन से भारत का नाम रोशन किया। श्री प्रमोद भगत जी आज सही मायने में लाखों लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। आज दुनिया के सभी महारथी उनके संघर्षों और मेहनत के सराहना करते हैं।


 

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