सावित्री बाई फुले की जीवनी।

सावित्री बाई फुले।

इस लेख में दी गयी जानकारी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध कवियत्री सावित्रीबाई फुले के ऊपर एक छोटा,उनकर जीवन गाथा की चर्चा की गई है।इसमें उन सभी बातों की चर्चा की गई जो उन्हें दुनिया के सामने महान बनने में सहयोग किया है। इसमें में हम उन सभी चीजो के बारे में जेनेंगे जिससे वह बहुत ही तेजी के साथ विश्व के समीप अपनी सफलता की एक प्ररेणादायक स्रोत छोड़ गई है। आइए जानते हैं कवयित्री सावित्री बाई फुले के बारे में।


सावित्री बाई फुले की जीवनी।


सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के एक जिला सतारा के नयागांव में हुआ था। इनके पति का नाम महात्मा ज्योति बा फुले था। ये बचपन से ही बहुत ही भावुक और सुलभ विचार के व्यक्ति थी। इनका मन शुरू से ही पढ़ने और लोगों के सेवा करने में मन लगता था। ये अपने समकालीन निरंकुश शासन के खिलाफ आवाज उठाती थी और अक्सर लोगो की मदद के लिए लड़ाई लड़ती थी।इसके लिए इनको कई बार उस समयबके शासको से मुह की भी खानी पड़ी,लेकिन फिर भी वे लोगों के मदद के लिए पीछे नही हटी और अंग्रेजो के खिलाफ डट कर मुकाबला की।

ये शुरुआत से ही पढ़ाई में भी काफी अच्छी थी और शुरुआत के दिनो से ही कविताएं लिखी करती थी और कहानी के रूप में लोगों पर बीतने वाले कहर को भी लिखा करती थी। इनके बहुत सारी कविताएं जो वर्तमान में लोगो के बीच काफी लोकप्रिय है जिसमे है, "अज्ञात" जिसका मतलब है शिक्षा के लिए जागृत ही जाओ,"श्रेष्ठ धन",अंग्रेजी मय्य,अंग्रेजी पढ़ो ऐसे कई सारे कविताएं उनकी बहुत प्रसिद्ध है।

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फूले की मदद से पुणे में 1 जनवरी 1848 को एक बालिका विद्यालय खोला,जिसमे वे सभी अशिक्षित लड़की और महिलाओं को शिक्षा से अवगत कराने का काम करती थी और यह कहती थी कि तुम अपने अधिकार के लिए आवाज उठाओ और लड़ो।आज भी इनके द्वारा स्थापित बालिका विद्यालय भारत सरकार के सहयोग से संचालित है। इस विद्यालय से इन्होंने स्त्री शिक्षा का पहला स्तम्भ स्थापित करने का काम किया।

इन्होंने यह काम उस समय किया जब महिलाओ को पर्दा और वुभिन्न तरह के सामाजिक कुरीतियों से बांध कर रखा था। जिस समय इन्होंने महिलाओं के लिए आवाज उठाई, उस समय लोगो ने इनका बहुत विरोद्ध किया परंतु इन्होंने किसी से डरे बिना आगे बढ़ती गयी और स्त्री शिक्षा की आगे बढ़ाती गयी।

सावित्री बाई फुले ने एक पुत्र गोद लिया था जिसका नाम यशवंत था जिसने 1897 प्लेग के चलते उन्होंने एक क्लीनिक खोला था इसके साथ सावित्रीबाई फुले ने भी अग्निपुत्र यशवंत के साथ शामिल हो गई थी लेकिन दुर्भाग्यवश वह भी प्लेग की चपेट ने आ  गई और 10 मार्च 9897 को उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया।

सावित्री बाई फुले का संक्षिप्त जीवनी(short biography of savitribai fule)


सावित्रीबाई फुले का जन्म 03 जनवरी 1831 को हुआ था।वह भारत पहली महिला शिक्षिका, समाज सुधारक एवं मराठी कवयित्री थी। उन्होंने अपने पति ज्योतिबराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखीनय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने एक पुत्र को भी गोद लिया था। सावित्री बाई फुले मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग नामक बीमारी से हो गया था। उन्होंने पाने जीवन मे बहुत सारी कविताएं एवम कहानी लिखी जो आज काफी लोकप्रिय है।


सावित्री बाई फुले एक कहानी के रूप में।

 
पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी स्कूल 1848 में ज्योति राव और सावित्रीबाई के द्वारा शुरू किया गया था ।परंतु उनके इस कदम के लिए उनके परिवार और समुदाय के लोगों दोनों का समाज द्वारा बहिष्कार कर दिया गया था। लेकिन फुले दंपति को उनके एक दोस्त उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख ने आश्रय दिया था ।जिन्होंने स्कूल शुरू करने के लिए अपने परिसर में फूले को स्थान भी दिया था।

सावित्रीबाई स्कूल की पहली शिक्षिका थी ।ज्योति राव और सावित्रीबाई के बाद में मंगल और महार जातियों के बच्चों के लिए स्कूल शुरू किए गए जिन्हें अश्पृश्यता और अछूता मान जाता था 1 मार्च 1852 में तीन स्कूल फुले द्वारा चल रहे थे। उसी वर्ष 16 नवंबर को ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सम्मानित भी किया। जबकि सावित्रीबाई को सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका का नाम भी दिया गया । वर्ष 1852 में सावित्रीबाई ने महिलाओं के बीच अपने अधिकार, गरिमा और अन्य सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से महिला सेवा मंडल भी शुरू किया । वह विधवाओं के बाल मुड़वाने के मौजूदा परंपरा का विरोध करने के लिए मुंबई और पुणे में हड़ताल भी की जिसमे वह भी सफल रही थी।

सावित्रीबाई फुले अक्सर महिलाओं के अधिकार को लेकर हड़ताल पर रहती थी और वह उस समय के सामाजिक कुरीतियां जो कि महिलाओं को दबाने के लिए अक्सर उन पर थोपी जाती थी उनके खिलाफ हमेशा कदम उठाया और पूरी हिम्मत और हौसला के साथ लड़ी और उनका यह प्रयास काफी हद तक सफल भी रहा।

सावित्रीबाई ने छुआछूत और जाति प्रथा के उन्मूलन में अपने पति के साथ मिलकर काम किया ।जो निचली जातियों के लिए लोगों के लिए समान अधिकारों को प्राप्त करने में और हिंदू परिवारिक जीवन में सुधार के लिए काम किया। दंपति ने एक युग के दौरान और अछूतों के लिए अपने घर में एक कुआं खोला जिस समय  एक अछूत की छाया को भी अशुद्ध मान जाता था ।और लोग प्यासे अछूतों को पानी की पेशकश करने के लिए भी अछूत माने जाते थे।

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